रवींद्रनाथ ठाकुर की पुण्यतिथि पर जानिए छत्तीसगढ़ से उनके गहरे संबंधों की कहानी। 1918 में उन्होंने अपनी पत्नी की टीबी के इलाज के लिए यहाँ की यात्रा की थी। जानिए उस दौर की कठिनाइयों और उनकी प्रसिद्ध कविता 'फांकी' की कहानी।
गौरव जैन, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। आज 7 अगस्त को नोबेल पुरस्कार विजेता और राष्ट्रगान के रचयिता कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर की 84वीं पुण्यतिथि है। छत्तीसगढ़ से टैगोर का एक अनूठा संबंध है, जो उनकी व्यक्तिगत पीड़ा और साहित्यिक संवेदनाओं से जुड़ा हुआ है। इस अवसर पर स्थानीय गौरेला बंगाली समाज ने जिला अस्पताल परिसर में टैगोर को श्रद्धांजलि अर्पित की।
रवींद्रनाथ टैगोर ने 1918 में अपनी पत्नी बीनू (मृणालिनी देवी) के टीबी के इलाज के लिए छत्तीसगढ़ के पेंड्रारोड रेलवे स्टेशन पर उतरकर सेनेटोरियम गुरुकुल की यात्रा की। उस समय टीबी एक लाइलाज बीमारी मानी जाती थी, और इलाज बहुत महंगा था। ब्रिटिश सरकार ने उस समय भारत में टीबी के इलाज के लिए केवल तीन सेनिटोरियम बनाए थे, जहां रोगियों के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान किया जाता था।
टैगोर की पत्नी बीनू की छह महीने के इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद टैगोर ने गहरी पीड़ा में 'फांकी' नामक कविता लिखी, जो आज भी बिलासपुर रेलवे स्टेशन की दीवार पर अंकित है। इस कविता के माध्यम से उन्होंने अपनी पत्नी के प्रति अपार प्रेम और दुख को व्यक्त किया।
आज भी इस कवि की स्मृति में उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है, और उनकी साहित्यिक विरासत को याद किया जाता है। रवींद्रनाथ टैगोर की इस गहन यात्रा और उनके काम की कहानी आज भी छत्तीसगढ़ के लोगों के दिलों में जीवित है।
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