पनिका समाज ने अनुसूचित जनजाति में शामिल होने की मांग को लेकर गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में हजारों की संख्या में रैली निकाली और ज्ञापन सौंपा। जानें आंदोलन की पूरी कहानी।
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही।
पनिका समाज ने अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल करने की मांग को लेकर आज गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में एक भव्य रैली का आयोजन किया। लाल बंगला स्थल पर हुए प्रदर्शन के बाद, समाज के हजारों लोगों ने पेंड्रा से गौरेला तक अधिकार रैली निकाली। इस रैली में हजारों की संख्या में पनिका समाज के लोग शामिल हुए और अपनी एकजुटता प्रदर्शित की।
क्या है मांग?
पनिका समाज का कहना है कि उन्हें छत्तीसगढ़ में भी अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल किया जाए। समाज का तर्क है कि 1971 के पहले, अविभाजित मध्य प्रदेश में उनकी जाति अनुसूचित जनजाति के तहत आती थी। लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद, उन्हें पिछड़ा वर्ग (OBC) में डाल दिया गया, जो उनके साथ न्याय नहीं है।
पनिका समाज का यह भी कहना है कि मध्य प्रदेश में आज भी उनकी जाति अनुसूचित जनजाति में शामिल है, जबकि छत्तीसगढ़ में उन्हें इस अधिकार से वंचित रखा गया है। समाज ने एक देश में समान कानून लागू करने की मांग की है।
ज्ञापन सौंपा गया:
समाज के प्रतिनिधियों ने इस मुद्दे को लेकर कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा, जिसे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक पहुंचाने की मांग की। ज्ञापन में समाज ने अपनी पीड़ा और मांगों का विस्तार से उल्लेख किया है।
आंदोलन का संकल्प:
पनिका समाज ने स्पष्ट किया कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं होती हैं, तो वे अपने आंदोलन को और तेज करेंगे। समाज के नेताओं ने कहा,
"यह हमारे अस्तित्व और अधिकार की लड़ाई है। जब तक हमारी जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं किया जाता, हम चुप नहीं बैठेंगे।"
रैली का महत्व:
यह रैली पनिका समाज के अधिकारों के प्रति उनकी एकजुटता और संकल्प को दर्शाती है। लाल बंगला स्थल पर प्रदर्शन और गौरेला-पेंड्रा तक निकाली गई रैली ने पूरे क्षेत्र में जनचेतना फैलाई है।
निष्कर्ष:
पनिका समाज का यह आंदोलन छत्तीसगढ़ की राजनीति और सामाजिक न्याय के लिए एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन इस आंदोलन ने प्रशासन और समाज में नई बहस को जन्म दे दिया है।
क्या यह न्याय का मामला है, या राजनीति का खेल? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।